बीकानेर स्थित राजस्थान राज्य अभिलेखागार देश के सबसे अच्छे और विश्व के चर्चित अभिलेखागारों में से एक है. इस अभिलेखागार की स्थापना 1955 में हुई और यह अपनी अपार व अमूल्य अभिलेख निधि के लिए प्रतिष्ठित है. यहां संरक्षित दुर्लभ दस्तावेजों की सुव्यवस्थित व्यवस्था काबिलेतारीफ है. अपने समृद्ध इतिहास स्रोतों और उनके बेहतर प्रबंधन, रखरखाव के चलते ही शायद इसे देश का सबसे अच्छा अभिलेखागार माना जाता है. इस अभिलेखागार की तीन विशेषताएं हैं, एक तो यहां उपलब्ध सामग्री इस लिहाज से निसंदेह रूप से यह देश के सबसे समृद्ध अभिलेखागारों में से एक है. दूसरा उपलब्ध सामग्री को संरक्षित सुरक्षित रखने के तौर तरीके और तीसरा इसका प्रबंधन. इन सबका एक साथ मिलना अपने आप में बड़ी बात है.
दुर्लभ दस्तावेज और स्रोत.
आजादी से पूर्व रियासतकालीन तथा मुगलकालीन इतिहास स्रोतों के विविध स्वरूप यहां सुरक्षित तथा संरक्षित हैं. यही कारण है कि राजस्थान और भारतीय इतिहास पर काम करने वाले देशी विदेशी शोधार्थिओं और जिज्ञासुओं का यहां निरंतर आना जाना बना रहता है. इस अभिलेखागार में विभिन्न स्वरूपों में संग्रहित मूल स्रोत सामग्री नयी पीढी के लिए सौगात से कम नहीं है. यहां मुगलकालीन फरमान, निशान, मंसूर, अर्जदास्त, ताम्रपत्र, रजत पत्र, सियाह हजूर, अखबारात, वकील रपटें, तोजियां बहियां, रूक्के, परवाने, पट्टे व दरबारी पत्र संग्रहीत तथा संरक्षित हैं. इस अभिलेखागार के संदर्भ पुस्तकालय की बात ही की जाए तो वहां 51 विषयों के अनुसार व्यवस्थित 50 हजार किताबें हैं. आजादी पूर्व की रियासतों के दुलर्भ प्रकाशन, विविध जनसंख्या रपटें, रिसर्च जर्नल तथा शोध पत्रिकाएं इसमें शामिल हैं.
दस्तावेजों का कंप्यूटरीकरण
बदलते वक्त के साथ इस अभिलेखागार में उपलब्ध दुर्लभ दस्तावेजों के कंप्यूटरीकरण (डिजिटलीकरण) का काम भी शुरू हो गया है. अभिलेखागार के निदेशक डा. महेंद्र खड़गावत ने बताया कि यह देश का पहला अभिलेखागार है, जो पुरा दस्तावेजों को ऑनलाइन करने जा रहा है. प्रथम और द्वितीय चरण में करीब 50 लाख दस्तावेजों का डिजिटलीकरण करके इसी वर्ष नवंबर तक ऑनलाइन कर दिया जाएगा. तीसरे चरण में एक करोड़ से ज्यादा दस्तावेजों के डिजिटलीकरण करने का बड़ा काम होगा, जिसमें तीन साल लग जाएंगे.
इसी तरह सभी दस्तावेजों की माइक्रोफिल्म भी बनाई जा रही है. इससे दस्तावेज अगले 500 साल तक सुरक्षित रहेंगे. अभी बीकानेर संभाग के करीब डेढ़ लाख रियासतकालीन पट्टों का डिजिटलीकरण करने का काम पूरा हो चुका है. दूसरे चरण में 25 लाख पर काम चल रहा है. 16 लाख दस्तावेजों का डिजिटलीकरण हो चुका है. नवंबर तक इन्हें नेट पर डाल दिया जाएगा. राज्य सरकार की वेबसाइट पर अभिलेखागार की ‘डिपार्टमेंट ऑफ आर्काइव्ज’ पर ये दस्तावेज उपलब्ध हो सकेंगे.
विदेशी शोधार्थी भी आते हैं.
संस्कृति व सभ्यता की दृष्टि से खास पहचान रखने वाले बीकानेर के अभिलेखागार में हर वर्ष करीब 500 शोधार्थी विभिन्न विषयों पर शोध करने आते हैं. यहां शोध के लिए आने वाले शोधार्थियों में विदेशी छात्र भी शामिल हैं. रियासतकालीन समय में कच्चे घरों पर की जाने वाली रंग-बिरंगी छपाई एवं पशु पक्षियों के शिकार की घटनाओं पर आज भी विदेशों से विद्यार्थी यहां आकर शोध करते हैं. निदेशक डॉ. खड़गावत ने बताया कि विदेशों से आने वाले शोधार्थी रियासतकाल में होने वाले आय-व्यय एवं उनके काम करने की प्रक्रिया पर ज्यादा शोध करते हैं.
डा. खड़गावत ने बताया कि वर्ष 2008-09 में बीकानेर के अभिलेखागार में 10 विदेशी विद्यार्थियों ने विभिन्न विषयों पर शोध कर पीएच.डी. की डिग्री हासिल की है। देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों से विद्यार्थी यहां आते हैं जिसमें नई दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी, जामिया मिलिया, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, पंजाब की चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी, बनारस विश्वविद्यालय प्रमुख हैं। वर्ष 2004 से पहले यहां आने वाले शोधार्थियों की संख्या बहुत कम थी लेकिन जैसे-जैसे यहां पर रियासतकालीन अभिलेखों को नया रूप दिया जा रहा है वैसे-वैसे शोधार्थियों की संख्या भी बढ़ रही है।
वैसे बीकानेर में पर्यटन की दृष्टि से कई संभावनाएं हैं जिसमें यहां का अभिलेखागार भी प्रमुख है. अगर आने वाले समय में इसे पर्यटकों के लिए खोल दिया जाए तो पर्यटकों की संख्या में तो इजाफा होगा ही, साथ ही सरकार को बड़ी मात्रा में राजस्व भी मिलेगा. यहां के दस्तावेजों का का कम्प्यूटरीकरण होने तथा इंटरनेट पर इनका संग्रह बनाने से दुनिया भर में इसकी लोकपि्रयता बढ़ेगी। इस दिशा में भी कदम उठाए जा सकते हैं.
अच्छी जानकारी. यही हमारे धरोहर हैं.
अच्छी जानकारी। निश्चय ही इस अभिलेखागार के बारे में पूरे देश के विद्यार्थियों को जानकारी मिलनी चाहिए। इससे अभिलेखागार और विद्यार्थियों दोनों का भला होगा।
आपने एक यात्रा में काफी कुछ समेट लिया है। मैंने तो सोचा था कि छोटी यात्रा में आपने केवल सरसरी जानकारी ली है। लेकिन आपने तो थोड़े समय में अपेक्षाकृत कम एक्सप्लोर ठिकानों को भी बखूबी देखा है।
घूमते-घूमते अच्छी जानकारी जुटा लेते है आप…..
thanx prithvi jee we are trying hard to dovelop rajasthan state archives.we hve dizitised 28 lacks historical record,pattas n rare books.34 lacks historical documents dizitaijation n microfilming work is going on progress.
bahut acchi jaankari hai.Very inspiring.
इस जानकारी से मेरे ज्ञान और जागरूकता में वृद्धि हुई। ऐसी ही संस्थाओं को पल्लवित करने का प्रयत्न समाज और शासन के हर वर्ग की ओर से होना चाहिए।
bahut achhi jankari share karne ke liye shukriya..Dr. Mahendra Khadgawat,director surely deserves laurels for his wonderful accomplishments.. The future will remember him with gratitude..
GOOD TO SEE OUR ARCHIVES ON WEBSITE
sir/ Madame… I am a villager of sri gangangar district of Rajasthan state. I want to ask you a question about the authentic map or model of my village. because i do not get it anywhere and i want to find it. would you please like to help me? Thanks .. have a nice day
Hello, Sanjay you can search it on google map, thats the best way till date we have.