प्रकृति को विनम्र शु​क्रिया: ओकुहेपा

ओकुहेपा साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार से सम्मानित डॉ. जितेंद्र सोनी पहला यात्रा वृ​तांत है और निसंदेह इसे हिंदी लेखन को समृद्ध करने का काम किया है। पढ़ना जारी रखें प्रकृति को विनम्र शु​क्रिया: ओकुहेपा

दोबरो युतरो!

दोबरो युतरो कविता संग्रह है जिसे यहां आर्डर किया जा सकता है। दोबरो युतरो यानी शुभप्रभात! पढ़ना जारी रखें दोबरो युतरो!

शब्दों का चमत्कारिक शहर ‘भरखमा’

डॉ. जितेंद्र सोनी की कहानियां राजस्थानी कहानी में आधुनिकता की आहट है। वे ठेठ देसी मुहावरों व संस्कारों से गढ़ी कहानियों को बड़ी सफाई से आधुनिक शहरी परिवेश में लाकर पाठक के चित को बांधते, बींधते हैं। पढ़ना जारी रखें शब्दों का चमत्कारिक शहर ‘भरखमा’

शब्दों की कंघियां!

फिल्मों के बारे में अकीरो कुरोसावा ने बड़ी अच्छी बात कही है। उन्होंने कहा कि फिल्म में सबकुछ होता है … पेंटिंग, साहित्य, थियेटर व संगीत आदि लेकिन फिल्म फिर भी फिल्म ही होती है।’ पढ़ना जारी रखें शब्दों की कंघियां!

बेहतर मौसमों की उम्मीद

आशीष बिहानी की कविता ‘मोतियाबिंद, आवाजों के’ की ये शुरुआती पंक्तियां अपने आप में बहुत सी उम्मीदों की गांठें खोलती हैं। उनके पास वक्त, काल को आब्जर्व करने की एक नयी दृष्टि है और उसे बयान करने के लिए अनूठे शब्द और बिंब भी। पढ़ना जारी रखें बेहतर मौसमों की उम्मीद

रेगमाल, जितेंद्र सोनी

रेगमाल : हर समय की कविताएं

डा. जितेंद्र सोनी का यह कविता संग्रह रेगमाल वाजपेयी की बात को चरित्रार्थ करता है। पनी कविताओं में वे कोई बड़ी बात नहीं करते वे छोटी छोटी बातों से उन बड़े मुद्दों को रेखांकित करने की कोशिश करते हैं जो व्यक्ति व समाज के रूप में हमें समय समय पर झिंझोड़ते रहते हैं। पढ़ना जारी रखें रेगमाल : हर समय की कविताएं

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उम्मीद का दूसरा नाम!

खाद के कट्टों में भरकर लटान पर रख दी गयी किताबों में कुछ महत्वपूर्ण व रोचक किताबें बंदी (लॉकडाउन) के इस दौर में निकल आई हैं। ऐसी ही किताब जगह दर्शन का मेला में यह रोचक घटना दर्ज है। इस दौर में जब शब्दों की दुनिया फेसबुक की संकरी गलियों व ट्वीटर की बांकी टेडी रपटीली पग​डंडियों में सिमट रही है किताबों को लेकर इस तरह की रोचक घटनाएं सच में सुकूं देती है। पढ़ना जारी रखें उम्मीद का दूसरा नाम!

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जुनूं की इक मंजिल सी मार्तिना

हमारे लिए मार्तिना एकमात्र ऐसी एथलीट रही जिसके जन्म लेने से पहले ही तय हो गया था कि वह टेनिस खेलेगी। मार्तिना हिंगिस की मां और टेनिस खिलाड़ी मेलेनी, दिग्गज मार्तिना नवरातो​लिवा की धुर प्रशंसक थी। मार्तिना हिंगिस जब गर्भ में थी तभी उसका मार्तिना नाम व खेल टेनिस तय हो गया। ​शायद इसी तैयारी और मां के सपनों ने मार्तिना का प्रारब्ध लिख दिया। पढ़ना जारी रखें जुनूं की इक मंजिल सी मार्तिना

तालाब

आज भी खरी-खरी

आज भी खरे हैं तालाब.. कोई धांसू नहीं बल्कि एक सहज, सरल किताब है. उतनी ही प्रवाहमान जितना की जीवन और जल. इसकी सहजता और प्रवाह ही इसे अनूठा बनाता है. हमारी भाषा में बहुत कम किताबें ही इतनी सरल हो सहज होती हैं. किताब जो जल जैसे जीवन तत्‍व के बारे में सोचने को मजबूर करे. जीवन में जल का महत्‍व है, वह पांच मूल तत्‍वों में है.. बिन पानी सब सून. जल, थल व नभ की सोचने वालों पाठकों के लिए यह अद्भुत, कालजयी पुस्‍तक है. पढ़ना जारी रखें आज भी खरी-खरी

रणखार: तमीज की कविता

जितेंद्र सोनी की कविताओं में बचपना है, बचपन है, पलायन है, धारावी है, एकांत है.. और सबसे बड़ी बात उनमें हमारे आसपास का लोक है. इस दौर में जबकि अंग्रेजी बोलना व अंग्रेजी में लिखना ही सफलता का पर्याय मान लिया गया है कितने लोग अपनी भाषा बोली में लिखते हैं. आईएएस जितेंद्र सोनी को इस बात के लिए भी सराहा जाना चाहिए कि उन्होंने कविताओं के लिए मातृभाषा राजस्थानी को चुना है. पढ़ना जारी रखें रणखार: तमीज की कविता

शूद्र: इस धरती के ललित ललाम

त्रिभुवन के नये कविता संग्रह ‘शूद्र’ की यही खासियत है। यह इतिहास, समाज और काल में शूद्रों के योगदान को सामने रखती है और उनके अवदान का लेखा जोखा मांगती है। दरअसल शूद्र कोई बड़ा कविता संग्रह नहीं बल्कि एक लं‍बी कविता का विस्‍तार भर है जिसकी शुरुआत बरसों पहले हुई थी। बीते लगभग दो दशकों में त्रिभुवन ने इस कविता को कई तरह से मांजा और अपडेट किया है। इस कविता की शुरुआत एक लोमहर्षक घटना से है कि कस प्रकार जोधपुर के मेहरानगढ़ दुर्ग के निर्माण में पहली ईंट की जगह एक शूद्र को जीवित चिना गया! पढ़ना जारी रखें शूद्र: इस धरती के ललित ललाम

सूखी हुई लूणी

लूणी नदी कभी अजमेर, बाड़मेर, जालोर, जोधपुर नागौर, पाली व सिरोही जिलों को सरसब्‍ज करते हुए बहती थी. दरअसल अजमेर के निकट अरावली पर्वतमाला के बर-ब्यावर के पहाड़ों से निकल यह नदी बिलाड़ा, लूणी, सिवाणा, कोटड़ी-करमावास व सिणधरी होते हुए पाकिस्तान की सीमा के पास स्थित राड़धरा तक बहती जाती. पढ़ना जारी रखें सूखी हुई लूणी

बर्फ कुछ भी नहीं

कविता केवल शब्दों को विषय की किसी एक लड़ी में पिरो देना ही नहीं होता बल्कि वह कवि के दर्शन और सोच को लेकर भी आगे बढ़ती है. पूजा गर्ग सिंह की कविताएं कुछ ऐसी ही हैं. वे विषय की गहराइयों, उंचाइयों व विस्तार की कसौटी पर खरी उतरती हैं कि उनकी कविताओं में गिरती हुई बर्फ, उगता हुआ सूरज और ढलती हुई रातें हैं. वे मचलती लहरों व जलते हुए खेतों की बात करती हैं. उनकी कविताओं में दुनिया जहान का वह समसा‍मयिक विषय है जो एक कवि का विचलित करता है. पढ़ना जारी रखें बर्फ कुछ भी नहीं

ब्राजील की बेटी

कहते हैं कि बेटियां जब घर आती हैं तो दीवारें मुस्कराने और दरवाजे गाने लगते हैं. साओ पाउलो से लेकर नेताल और रीयो डी जेनेरियो से लेकर सल्वाडोर तक ब्राजील की हर गली इन दिनों नाच रही है क्योंकि उसकी बेटी घर आई है. फुटबाल ब्राजील की बेटी है. उसकी लाडकंवर है. वह यहां की गलियों, नुक्कड़ों में खेल खेल कर बड़ी हुई है. संवरी है. पढ़ना जारी रखें ब्राजील की बेटी